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मनोरंजक कथाएँ >> अलादीन औऱ जादुई चिराग

अलादीन औऱ जादुई चिराग

ए.एच.डब्यू. सावन

प्रकाशक : मनोज पब्लिकेशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :16
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4779
आईएसबीएन :81-310-0200-4

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अलादीन की रोचक एवं मनोरंजक कहानी का वर्णन

Aladin Aur Jadui Chirag A Hindi Book A.W.H. Sawan- अलादीन औऱ जादुई चिराग - ए.एच.डब्यू. सावन

 

अलादीन और जादुई चिराग


"जल्दी बोल।” घोड़े जैसे चेहरे वाला दहाड़ा- “वरना मैं तुझे कच्चा चबा जाऊँगा।"
"मैं...मैं अलादीन हूँ...।” हड़बड़ाकर मगर निडरता से अलादीन ने जवाब दिया।
"अबे, अपने बाप का नाम बोल।” वह दहाड़ा।
"मुस्तफा दर्जी।”
“ठीक है। तू ही इस चिराग का असली हकदार है...।” इस बार वह नरम होकर बोला।
उसके नरम व्यवहार को देखकर अलादीन ने पूछा- "मगर आप कौन हैं?”
"मैं इस चिराग का रखवाला हूँ। हजारों सालों से यहाँ मैं इसकी हिफाजत कर रहा हूँ। मेरे आका का हुक्म है कि जब तक तू यहाँ पहुँचकर अपनी अमौनत ने हासिल कर ले, तब तक मैं इसकी हिफाजत करूं....। ले अलादीन सम्भाल अपनी अमानत। लेकिन, होशियार रहना, आज तक हजारों मक्कार लोग, जादूगर व तांत्रिक, जो इस चिराग को हासिल करना चाहते थे, मेरे हाथों मारे जा चुके हैं। तुमने सुरंग के बाहर हड्डियों के ढेर तो देखे ही होंगे...।”
(इसी कथा का अंश)

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